पोलावरम परियोजना: आंध्र प्रदेश के भविष्य का महत्वपूर्ण स्तंभ
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में एक ऐतिहासिक घोषणा की कि राज्य की महत्वाकांक्षी पोलावरम परियोजना को 2027 तक पूरा कर दिया जाएगा। इस परियोजना को 'जीवन रेखा और मेरुदंड' का दर्जा देने वाले नायडू ने इसे राज्य की जल संकट की समस्या का समाधान मानते हुए कहा कि इसे हर हाल में पूरा किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने यह घोषणा विधानसभा में संबोधन के दौरान की, जहां उन्होंने साफ कहा कि परियोजना की प्रगति को वित्तीय कठिनाइयों के बावजूद जारी रखा जाएगा। यह दावा किया गया कि यदि तेलुगू देशम पार्टी (TDP) की सरकार 2019 के बाद भी सत्ता में बनी रहती, तो परियोजना आज पूरी हो चुकी होती।
केंद्र सरकार की भूमिका और वित्तीय सहायता
इस विशाल परियोजना की कुल लागत का अनुमान लगभग 55,000 करोड़ रुपये है, जिसमें से केंद्र सरकार ने 12,157 करोड़ रुपये दो सालों में देने का संकल्प किया है। अब तक, केंद्र सरकार द्वारा 2,348 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं और 468 करोड़ रुपये की राशि का पुनर्भुगतान किया गया है, जिससे कुल मिलाकर 2,900 करोड़ रुपये का वित्त उपलब्ध कराया गया है।
इन सभी आर्थिक व्यवस्थाओं के बावजूद, मुख्यमंत्री ने परियोजना की अपरिहार्यता पर जोर दिया है। उन्होंने परियोजना के निर्माण कार्य को अगले साल जनवरी 2025 से शुरू करने और मार्च 2026 तक पूरा करने की योजना प्रस्तुत की है, जिसमें नए डायाफ्राम दीवार का निर्माण शामिल है।
राजनीतिक विवाद और टीडीपी की उपलब्धियाँ
इस विशेष योजना में देरी को लेकर नायडू ने पूर्ववर्ती YSR कांग्रेस पार्टी की सरकार पर आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया था कि 2014 से 2019 के बीच TDP ने परियोजना कार्य का 72% पूरा किया था, जबकि YSR कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल में मात्र 3.08% का काम किया।
सरकार पर आरोप था कि वे राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित होकर परियोजना की प्रगति में बाधा डाल रहे थे, जिससे राज्य के किसानों और औद्योगिक विकास प्रभावित हो रहे थे। नायडू ने यह भी कहा कि यदि TDP सत्ता में होती, तो परियोजना का मौजूदा चरण अब तक समाप्त हो चुका होता।
राज्य के कृषि और आर्थिक विकास के लिए महत्व
पोलावरम परियोजना का महत्व केवल जल संकट को सामना करने में नहीं है, बल्कि इसका संबंध राज्य के व्यापक आर्थिक और कृषि विकास से भी है। इस परियोजना से 7.20 लाख एकड़ नई आयकट पैदा होगी, जबकि 24 लाख एकड़ की अतिरिक्त आयकट को स्थिर किया जाएगा। इसके अलावा, यह कृष्णा नदी के लिए 80 टीएमसी फीट पानी प्रदान करने और विशाखापत्तनम स्टील संयंत्र के लिए 23.44 टीएमसी फीट पानी उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है।
ऊर्जा उत्पादन के दृष्टिकोण से भी यह परियोजना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे 960 मेगावाट जलविद्युत ऊर्जा का उत्पादन होगा। यह परियोजना राज्य में नदी-जोड़ परियोजना की योजनाओं के तहत विकसित की जा रही है, जिससे राज्य के हर एक एकड़ को जल आपूर्ति सुनिश्चित हो सके।
संभावना: जन-निजी साझेदारी मॉडल का उपयोग
मुख्यमंत्री ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए जन-निजी साझेदारी मॉडल की संभावना जताई, जिसका उपयोग राष्ट्रीय राजमार्ग प्रोजेक्ट्स के निर्माण में किया जाता है। यह मॉडल ना केवल तेजी से प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाएगा बल्कि वित्तीय प्रबंधन में सहायक होगा। इस मॉडल के माध्यम से राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर प्रोजेक्ट को समर्थन प्रदान करेंगे।
यह कदम एक महत्वाकांक्षी योजना जैसा प्रतीत होता है, जहां सरकार अपने संसाधनों को अपनाकर जन हित में कार्य कर रही है।
आखिरी में, मुख्यमंत्री नायडू ने एक बार फिर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि पोलावरम परियोजना पूर्ण होती है तो यह ना केवल आर्थिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी राज्य के लिए एक नई दिशा का निर्धारण करेगी।
10 टिप्पणि
Ravi Kant
नवंबर 20, 2024 AT 03:19 पूर्वाह्नये परियोजना सिर्फ पानी का मुद्दा नहीं, ये तो तेलुगु देशम की आत्मा है। जब तक ये पूरी नहीं होगी, हमारी नदियाँ रोती रहेंगी।
Harsha kumar Geddada
नवंबर 21, 2024 AT 19:59 अपराह्नदेखो यार, इस तरह की बड़ी परियोजनाओं में सिर्फ वित्त या राजनीति नहीं, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक आवश्यकता होती है - जब एक समुदाय अपनी जल संस्कृति को बचाना चाहता है, तो वो केवल बांध नहीं बनाता, वो अपने भविष्य की नींव रखता है। पोलावरम केवल एक डैम नहीं, ये तो तेलुगु भाषा, तेलुगु कृषि, तेलुगु सपनों का जीवन है। अगर हम इसे रोक देंगे, तो हम अपने आपको ही बेकार बना रहे हैं।
sachin gupta
नवंबर 22, 2024 AT 11:56 पूर्वाह्नमुख्यमंत्री का एनालिसिस बिल्कुल फाइन है, लेकिन अगर हम जन-निजी साझेदारी मॉडल पर जा रहे हैं, तो क्या हम ये नहीं सोच रहे कि निजी कंपनियाँ भी लाभ कमाने के लिए बांध के पानी को ट्रेड करने लगेंगी? ये तो बस नए तरीके से जल संकट को बेचना है।
Shivakumar Kumar
नवंबर 23, 2024 AT 09:56 पूर्वाह्नभाई, ये परियोजना तो एक जीवित अनुभव है - जैसे कोई बड़ा बाप अपने बच्चों को पानी देने के लिए दूर-दूर तक चलता है। आज जो लोग इसे राजनीति का टूल बना रहे हैं, वो अपने अंदर के बच्चे को भूल गए। ये बांध सिर्फ पानी नहीं देगा, ये आशा देगा। जब एक किसान का बेटा पहली बार खेत में अपनी फसल देखेगा, तो वो याद करेगा - ये बांध उसके नाना के सपने का हिस्सा था।
saikiran bandari
नवंबर 24, 2024 AT 21:43 अपराह्न2027 तक ये बांध पूरा होगा तो फिर क्या होगा फिर भी बाढ़ आएगी और जमीन नहीं बंटेगी और फिर कोई नया बांध बनेगा
Rashmi Naik
नवंबर 25, 2024 AT 14:53 अपराह्नये जल-विद्युत और आयकट के नंबर्स बहुत फेक हैं जैसे कोई बोले कि ये परियोजना एक एकड़ में 1000kg गेहूँ देगी जबकि वो जमीन तो नमकीन है और जलवायु बदल रहा है और जल स्तर गिर रहा है
Vishakha Shelar
नवंबर 26, 2024 AT 16:11 अपराह्नमैं रो रही हूँ 😭 ये सब तो सिर्फ नायडू की इच्छा है जो बचपन में एक नदी के किनारे बैठकर बातें करती थी और अब वो बांध बनवा रही है ताकि उसका दिल शांत हो जाए 😭
Ayush Sharma
नवंबर 27, 2024 AT 22:00 अपराह्नमुख्यमंत्री के बयान को आधिकारिक रूप से देखने पर यह एक व्यापक जल सुरक्षा रणनीति है। हालांकि, आर्थिक और वातावरणीय निर्धारणों के आधार पर, यह एक जटिल अनुकूलन जरूरी है।
charan j
नवंबर 28, 2024 AT 20:52 अपराह्नसब बकवास है। जब तक बांध नहीं बनेगा तब तक चलता रहेगा बांध बनाने का नाम। बस लोगों को भ्रम में रखो।
Kotni Sachin
नवंबर 30, 2024 AT 07:26 पूर्वाह्नयह परियोजना, अगर इसकी निर्माण गुणवत्ता, जल वितरण न्याय, और स्थानीय समुदायों के साथ सहमति के आधार पर लागू की जाए, तो यह एक ऐतिहासिक, जलवायु-अनुकूल, और सामाजिक रूप से न्यायसंगत उपलब्धि हो सकती है। लेकिन, यदि इसे केवल राजनीतिक लाभ के लिए या वित्तीय लाभ के लिए चलाया जाता है, तो यह एक विशाल असफलता बन जाएगी। हमें इसे जन-केंद्रित तरीके से देखना होगा, न कि बजट-केंद्रित तरीके से।