विश्व स्किज़ोफ्रेनिया दिवस: मानसिक रोग से जुड़ी भ्रांतियों पर चोट
क्या आपको पता है कि स्किज़ोफ्रेनिया केवल फिल्मों या टीवी सीरियलों की कहानी नहीं है? असल जिंदगी में अलग-अलग लोग इससे जूझ रहे हैं। हर साल 24 मई को विश्व स्किज़ोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है, ताकि लोगों को इस जटिल मानसिक रोग के बारे में जागरूक किया जा सके। अलग-अलग देशों में यह दिवस उस बड़े बदलाव की याद दिलाता है, जब 18वीं सदी में डॉ. फिलिप पिनेल ने मानसिक रोगियों को जंजीरों से आज़ाद किया था। इसकी वजह से आज मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात हो रही है, वरना कभी ऐसे मरीजों को समाज से अलग-थलग कर दिया जाता था।
अगर आप या आपके परिवार में किसी को लगातार भ्रम, अजीब आवाजें सुनाई देना या बिना वजह डर लगने जैसी शिकायतें रहती हैं, तो यह साधारण चिंता या तनाव नहीं, बल्कि हेलुसिनेशन और डिल्यूजन जैसी स्किज़ोफ्रेनिया की शुरुआती निशानियां हो सकती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, पूरी दुनिया में करीब एक व्यक्ति हर 300 में से स्किज़ोफ्रेनिया से प्रभावित है। लेकिन समाज में 'पागलपन' जैसी गलतफहमियों के चलते लोग इलाज के बजाय छुपते फिरते हैं या आखिरी वक्त में डॉक्टर तक पहुँचते हैं।
जल्दी पहचान और सही जानकारी की चुनौती
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि स्किज़ोफ्रेनिया की सही समय पर पहचान और इलाज मिलने से मरीज की जिंदगी काफ़ी बदल सकती है। आम तौर पर इसकी शुरुआत युवावस्था में दिखती है। पर लोग लक्षणों को सिर्फ 'चिड़चिड़ापन' या 'अलग स्वभाव' समझकर नजरअंदाज कर बैठते हैं। असल में, इलाज देरी से मिलना बीमारी को और गंभीर बना देता है। शुरुआत में मामूली तौर पर अजीब बातें करना, शक करना या खुद से बातें करना भी गंभीर संकेत हो सकते हैं।
दिक्कत ये है कि ग्रामीण इलाकों में अब भी दवा की सुविधा और चिकित्सकीय सलाह पर्याप्त नहीं मिलती। कई बार मरीज के घरवाले समाज के डर से इलाज ही नहीं करवाते। इसके चलते प्रभावित लोग सोशल आइसोलेशन यानी समाज से कटकर रहने को मजबूर हो जाते हैं। इसके बारे में शिक्षा, सरकारी योजनाएं और मीडिया के ज़रिए बताना बहुत जरूरी है, ताकि लोग चुप न रहें और समय रहते मदद लें।
- जल्दी निदान और इलाज से रोगी का आत्मविश्वास लौटता है
- भ्रांतियों को दूर करने के लिए स्कूल, मीडिया और परिवार में बातचीत जरूरी
- सरकारी या निजी हेल्थ सेंटर्स में मानसिक स्वास्थ्य रिसोर्स को बढ़ावा देना होगा
स्किज़ोफ्रेनिया कोई 'कमजोरी' या 'शर्म की बात' नहीं है, ये एक वास्तविक रोग है जिसमें सही इलाज, परिवार और समाज का सहयोग जरूरी है। ये दिवस उसी चेतना को मजबूत करने की पहल है। देश की बड़ी आबादी मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर नहीं बोलती, लेकिन अब बदलाव की बयार शुरू हो चुकी है। अधिक जानकारी और बेहतर समझ से प्रभावित लोगों की गरिमा बनाए रखना आसान बन सकता है।