नई फ़ीस नीति का आँकलन
संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक व्यापक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत H-1B वीजा की फीस अब 100,000 से 152,000 डॉलर तक पहुँच गई है। अभी तक का औसत शुल्क लगभग 1,000‑4,500 डॉलर था, यानी लागत में लगभग सौ गुना बढ़ोतरी। ट्रम्प ने कहा, "हमें केवल असाधारण प्रतिभा चाहिए, और यही नई फ़ीस सुनिश्चित करेगी"।
यह बदलाव सीधे उन कंपनियों को निशाना बनाता है जो बड़ी संख्या में भारतीय तकनीक कर्मचारियों को यू.एस. में भेजती हैं। भारतीय आईटी फर्मों ने चेतावनी दी है कि इतनी भारी फीस उनके अमेरिकी प्रोजेक्ट्स की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
प्रमुख क्षेत्रों पर प्रभाव
तकनीकी जगत में माइक्रोसॉफ्ट, जेम्पॉरियन, अमेज़न आदि बड़े नामों ने अपने मौजूदा H-1B धारकों को स्थिति का आकलन करने और अगले कदम तय करने के लिए अमेरिका में रहकर काम करने का सुझाव दिया है। यह संकेत देता है कि कंपनियां अपनी अंतरराष्ट्रीय टैलेंट पाइपलाइन को नष्ट नहीं होना चाहतीं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी घबराहट है। कई छोटे शहरों और ग्रामीण अस्पतालों में विदेशी डॉक्टरों की निर्भरता बहुत अधिक है। अब यदि अस्पतालों को यह फीस चुकानी पड़े तो डॉक्टरों की भर्ती में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे मरीजों को सीधे असर पड़ेगा।
कानूनी विशेषज्ञ इस आदेश को चुनौती देने की उम्मीद कर रहे हैं। अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल के एरन रीचलिन‑मेलनिक का मानना है कि सरकार के पास ऐसी फ़ीस निर्धारित करने का वैध अधिकार नहीं है, क्योंकि ह-1ब वीजा शुल्क को बदलने के लिए साल में दो बार सार्वजनिक टिप्पणी और नोटिस की प्रक्रिया अनिवार्य है।
आर्थिक विश्लेषकों की राय विभाजित है। कुछ तर्क देते हैं कि यह कदम अमेरिकी रोजगार को बढ़ावा दे सकता है, जबकि कई चिंतित हैं कि नवाचार और प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचेगा। विशेष रूप से सॉफ्टवेयर विकास, डेटा विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी जैसी हाई‑टेक इंडस्ट्रीज़ में विदेशी प्रतिभा का अभाव गंभीर चुनौतियाँ खड़ा कर सकता है।
राजनीतिक तौर पर, प्रतिनिधि प्रमिला जयपाल ने कहा, "डॉक्टर, वैज्ञानिक और इंजीनियर जैसे कुशल कार्यकर्ता इस वीजा के बिना हमारी राष्ट्रीय नवाचार क्षमता को नष्ट कर देंगे"। कांग्रेस में भी इस नीति के खिलाफ आवाज़ें तेज़ हो रही हैं।
- भारतीय आईटी कंपनियों की संभावित आय में गिरावट
- अमेरिकी कंपनियों को वैकल्पिक हायरिंग रणनीति अपनानी पड़ेगी
- हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में विदेशी डॉक्टरों की कमी का जोखिम
- संविधानिक चुनौती के कारण नीति में संशोधन की संभावना
जैसे ही न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, भारतीय तकनीकी पेशेवरों और अमेरिकी नियोक्ताओं दोनों को इस बदलाव के साथ तालमेल बिठाना पड़ेगा। नई फ़ीस नीति के प्रभाव को समझने और उससे निपटने के लिए दोनों पक्षों को लंबी अवधि की रणनीति बनानी होगी।
7 टिप्पणि
Ravi Kant
सितंबर 23, 2025 AT 05:39 पूर्वाह्नये फीस बढ़ाने वाले लोग सोचते हैं कि हम भारतीय इंजीनियर्स सिर्फ बिना कुछ किए पैसे कमा रहे हैं? हमने अमेरिका के स्टार्टअप्स को बनाया, उनकी कोडिंग की, उनके सर्वर चलाए। अब जब हम बन गए तो दरवाजा बंद कर दिया। ये नफरत नहीं, डर है।
Harsha kumar Geddada
सितंबर 25, 2025 AT 02:04 पूर्वाह्नइस नीति के पीछे का तर्क एक अत्यंत असंगठित राष्ट्रीय स्वार्थ का प्रकटीकरण है, जो ग्लोबल टैलेंट के बहाव को रोकने की बजाय अपने आप को एक नए तरह के औद्योगिक कैदखाने में बंद कर रहा है। जब एक देश अपने आप को बुद्धिजीवियों से दूर करता है, तो वह अपने भविष्य को बेच रहा होता है। ह-1बी वीजा सिर्फ एक वीजा नहीं, ये एक संवेदनशील जीवन रेखा है जिससे नवाचार का रक्त संचार होता है। इसे बंद करने का मतलब है अपने आप को एक तकनीकी निर्वाहक बना लेना।
sachin gupta
सितंबर 26, 2025 AT 17:30 अपराह्नमैंने अमेरिका में काम किया है, और बता दूँ कि ये 152K फीस? बहुत ज्यादा नहीं है। अगर तुम एक टॉप टेक फर्म में हो तो तुम्हारा बैंक बैलेंस इतना भी नहीं होता। असली समस्या ये है कि भारत के छोटे आईटी कंपनियां अपने बॉस को बताना भूल गईं कि वो अब एक टेक्नोलॉजी कंपनी नहीं, एक ग्लोबल टैलेंट एजेंसी हैं। अगर तुम नहीं बदल सकते, तो निकल जाओ।
Shivakumar Kumar
सितंबर 27, 2025 AT 21:43 अपराह्नदोस्तों, ये जो फीस बढ़ी है, वो सिर्फ पैसे की बात नहीं है। ये एक संदेश है - तुम आए हो तो अपनी ज़िंदगी अमेरिका में बिताओ, अपने देश को भूल जाओ। लेकिन हम भारतीय नहीं भूलते। हम वहीं काम करते हैं, वहीं घर बनाते हैं, वहीं बच्चों को पढ़ाते हैं। अगर अमेरिका हमें बंद कर देता है, तो हम भारत के लिए अधिक तेज़ बन जाएंगे। हम अपने घर पर ही दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी बना लेंगे। इस फीस को एक चुनौती के रूप में लो, न कि एक दीवार के रूप में।
saikiran bandari
सितंबर 27, 2025 AT 23:46 अपराह्नये सब बकवास है फीस बढ़ाने की बात भी बकवास अमेरिका के लोग अपने आप को नहीं बचा पा रहे तो हम पर आरोप लगा रहे हैं
Rashmi Naik
सितंबर 28, 2025 AT 14:03 अपराह्नलोगों को लगता है ह-1बी वीजा एक गारंटी है लेकिन असल में ये एक फैक्ट्री में काम करने का लाइसेंस है और अब जब फीस बढ़ गई तो ये लाइसेंस बिल्कुल बेकार हो गया क्योंकि जो फर्मेस इसे खरीद पाती हैं वो अब अपने एमएस एक्सेल शीट्स पर फोकस करेंगे न कि टेक्नोलॉजी पर
Vishakha Shelar
सितंबर 29, 2025 AT 00:13 पूर्वाह्नमैं रो रही हूँ 😭 ये तो मेरे सपनों को तोड़ रहा है मैं तो अमेरिका जाने के लिए तीन साल तक कोडिंग कर रही थी अब क्या करूँ मैं बस रो रही हूँ