ट्रम्प का H-1B वीजा फ़ीस वृद्धि: अमेरिकी सपनों पर बड़ा झटका
21 सितंबर 2025

नई फ़ीस नीति का आँकलन

संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक व्यापक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत H-1B वीजा की फीस अब 100,000 से 152,000 डॉलर तक पहुँच गई है। अभी तक का औसत शुल्क लगभग 1,000‑4,500 डॉलर था, यानी लागत में लगभग सौ गुना बढ़ोतरी। ट्रम्प ने कहा, "हमें केवल असाधारण प्रतिभा चाहिए, और यही नई फ़ीस सुनिश्चित करेगी"।

यह बदलाव सीधे उन कंपनियों को निशाना बनाता है जो बड़ी संख्या में भारतीय तकनीक कर्मचारियों को यू.एस. में भेजती हैं। भारतीय आईटी फर्मों ने चेतावनी दी है कि इतनी भारी फीस उनके अमेरिकी प्रोजेक्ट्स की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।

प्रमुख क्षेत्रों पर प्रभाव

तकनीकी जगत में माइक्रोसॉफ्ट, जेम्पॉरियन, अमेज़न आदि बड़े नामों ने अपने मौजूदा H-1B धारकों को स्थिति का आकलन करने और अगले कदम तय करने के लिए अमेरिका में रहकर काम करने का सुझाव दिया है। यह संकेत देता है कि कंपनियां अपनी अंतरराष्ट्रीय टैलेंट पाइपलाइन को नष्ट नहीं होना चाहतीं।

स्वास्थ्य क्षेत्र में भी घबराहट है। कई छोटे शहरों और ग्रामीण अस्पतालों में विदेशी डॉक्टरों की निर्भरता बहुत अधिक है। अब यदि अस्पतालों को यह फीस चुकानी पड़े तो डॉक्टरों की भर्ती में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे मरीजों को सीधे असर पड़ेगा।

कानूनी विशेषज्ञ इस आदेश को चुनौती देने की उम्मीद कर रहे हैं। अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल के एरन रीचलिन‑मेलनिक का मानना है कि सरकार के पास ऐसी फ़ीस निर्धारित करने का वैध अधिकार नहीं है, क्योंकि ह-1ब वीजा शुल्क को बदलने के लिए साल में दो बार सार्वजनिक टिप्पणी और नोटिस की प्रक्रिया अनिवार्य है।

आर्थिक विश्लेषकों की राय विभाजित है। कुछ तर्क देते हैं कि यह कदम अमेरिकी रोजगार को बढ़ावा दे सकता है, जबकि कई चिंतित हैं कि नवाचार और प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचेगा। विशेष रूप से सॉफ्टवेयर विकास, डेटा विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी जैसी हाई‑टेक इंडस्ट्रीज़ में विदेशी प्रतिभा का अभाव गंभीर चुनौतियाँ खड़ा कर सकता है।

राजनीतिक तौर पर, प्रतिनिधि प्रमिला जयपाल ने कहा, "डॉक्टर, वैज्ञानिक और इंजीनियर जैसे कुशल कार्यकर्ता इस वीजा के बिना हमारी राष्ट्रीय नवाचार क्षमता को नष्ट कर देंगे"। कांग्रेस में भी इस नीति के खिलाफ आवाज़ें तेज़ हो रही हैं।

  • भारतीय आईटी कंपनियों की संभावित आय में गिरावट
  • अमेरिकी कंपनियों को वैकल्पिक हायरिंग रणनीति अपनानी पड़ेगी
  • हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में विदेशी डॉक्टरों की कमी का जोखिम
  • संविधानिक चुनौती के कारण नीति में संशोधन की संभावना

जैसे ही न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, भारतीय तकनीकी पेशेवरों और अमेरिकी नियोक्ताओं दोनों को इस बदलाव के साथ तालमेल बिठाना पड़ेगा। नई फ़ीस नीति के प्रभाव को समझने और उससे निपटने के लिए दोनों पक्षों को लंबी अवधि की रणनीति बनानी होगी।