सोनिया गांधी ने 79वें जन्मदिन पर 'वंदे मातरम्' कहकर दिया राष्ट्रीय संदेश
10 दिसंबर 2025

9 दिसंबर 2025 को संसद भवन के कांग्रेस संसदीय दल कार्यालय में, बिना धूमधाम के, बिना मीडिया के जलवा के, सोनिया गांधी ने अपना 79वां जन्मदिन मनाया। एक छोटा सा केक, कुछ गुलाब, और फिर एक ऐसा शब्द जिसने पूरे देश को चौंका दिया — वंदे मातरम्। जब मीडिया ने पूछा, "आप देश को क्या संदेश देना चाहेंगी?" तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा — "वंदे मातरम्... जय हिंद।" यह कोई साधारण बयान नहीं था। यह एक चुनौती थी। एक शांत, लेकिन दृढ़ चुनौती।

एक शांत चुनौती, एक गहरा संदेश

दो दिन पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 'वंदे मातरम्' का विरोध किया था क्योंकि इससे 'मुसलमान नाराज हो सकते हैं'। यह बयान तुरंत विवाद का केंद्र बन गया। इतिहासकारों ने इसे चयनात्मक उद्धरण बताया। विपक्ष ने इसे चुनावी गतिविधि बताया। और फिर मंगलवार को, संसद के अंदर, सोनिया गांधी ने उसी शब्द को दोहराया — बिना गुस्से के, बिना नारे के, बस एक मुस्कान के साथ।

यह वही शब्द था जो 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था। वही शब्द जिसे 1937 में कांग्रेस ने राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया था। वही शब्द जिसे 1950 में संविधान ने अधिकृत किया। और आज, एक ऐसे दिन जब इसे राजनीतिक बैलेंस शीट पर लिखा जा रहा था, उसे एक व्यक्ति ने बस इतना कह दिया — जैसे कोई पूछे, "आज का मौसम कैसा है?" और जवाब में कह दिया जाए, "धूप है।"

विपक्ष की एकजुटता: खड़गे, राहुल, प्रियंका, अखिलेश

उस दिन संसद भवन में जो आयोजन हुआ, वह कांग्रेस का नहीं, विपक्ष का एक छोटा सा जुलूस था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्विटर पर लिखा: "पिछड़े लोगों के अधिकारों की पक्की समर्थक, वह हमेशा से ही एक मिसाल रही हैं।" राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा दोनों उपस्थित थे। और फिर आये अखिलेश यादव और डिंपल यादव — समाजवादी पार्टी के नेता, जिनकी पार्टी अक्सर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ती है। उन्होंने लिखा: "चलो मिलजुलकर बाँटें मुस्कान!"

यह दृश्य अनोखा था। एक ऐसा दृश्य जो आज के राजनीतिक वातावरण में लगभग असंभव लगता है। एक ऐसा दृश्य जहां विपक्षी नेता एक साथ खड़े हैं — न किसी रैली के लिए, न किसी विरोध के लिए, बल्कि एक व्यक्ति के जन्मदिन पर। एक व्यक्ति जिसने 1998 से 2017 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता की — सबसे लंबे समय तक।

राष्ट्रीय गीत पर बहस: नेहरू का बयान और वास्तविकता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जो बयान दिया, उसका स्रोत एक 1937 के समय का एक अंश था, जिसे आजकल अक्सर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि नेहरू ने 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1947 में स्वतंत्रता के बाद इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में बढ़ावा दिया। इसका विरोध करने का आरोप एक ऐसा अर्थ है जो इतिहास के साथ नहीं खाता।

प्रियंका गांधी वाड्रा ने उसी दिन के बाद केरल से जवाब दिया: "भाजपा बंगाल चुनाव के लिए राष्ट्रीय गीत को राजनीतिक हथियार बना रही है।" यह बात सही है। राष्ट्रीय गीत पर बहस कभी इतिहास पर नहीं, हमेशा चुनावी रणनीति पर होती है। और इस बार, सोनिया गांधी ने बहस को बंद कर दिया — एक शब्द से।

एक अनुशासित जीवन, एक अदृश्य ताकत

सोनिया गांधी आज अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी राज्यसभा की सांसद हैं। वह कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष हैं। उनकी उपस्थिति अक्सर नजर नहीं आती, लेकिन उनकी उपस्थिति का असर हमेशा महसूस होता है। उनके बारे में बहुत कम बात होती है। उन्होंने कभी भी बड़े भाषण नहीं दिए। उनके पास कोई विराट नेतृत्व शैली नहीं है। लेकिन उनके पास एक ऐसी धैर्य है जो अक्सर नेताओं के लिए अप्राप्त होता है।

उन्होंने 1998 में अध्यक्ष बनने के बाद कभी भी अपने विदेशी मूल के बारे में बात नहीं की। उन्होंने जब भी कोई आक्षेप किया, तो उत्तर दिया — "मैं भारतीय हूँ।" उन्होंने अपने पति राजीव गांधी की हत्या के बाद भी राजनीति छोड़ने का विचार नहीं किया। उन्होंने बच्चों को बड़ा किया, देश को नेतृत्व दिया, और फिर धीरे-धीरे पीछे हट गईं।

भविष्य क्या है?

अगले साल बंगाल चुनाव, फिर लोकसभा चुनाव। विपक्ष को एकजुट होने की जरूरत है। और अगर कोई व्यक्ति अभी भी विपक्ष के बीच एक अदृश्य बंधन है, तो वह हैं — सोनिया गांधी। उनका जन्मदिन एक निजी अवसर था। लेकिन उनका एक शब्द, एक शांत मुस्कान, एक राष्ट्रीय बहस को बदल सकता है।

क्या आगे क्या होगा?

भाजपा अगले दिन शायद फिर से नेहरू के बयानों को उद्धृत करेगी। लेकिन अब उनके बयान के सामने एक और आवाज है — जो बिना शोर के, बिना आवाज के, बस एक शब्द के साथ बोलती है। और वह शब्द है — वंदे मातरम्।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सोनिया गांधी ने 'वंदे मातरम्' क्यों कहा?

सोनिया गांधी ने 'वंदे मातरम्' कहकर राष्ट्रीय गीत पर चल रही राजनीतिक बहस का जवाब दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जवाहरलाल नेहरू पर आरोपों के बाद, उनका यह बयान एक शांत लेकिन दृढ़ इतिहास की याद दिलाने का तरीका था — जो नेहरू के विरोध का नहीं, बल्कि उनके समर्थन का साक्ष्य था।

इस जन्मदिन पर विपक्षी नेता क्यों एकजुट हुए?

इस जन्मदिन पर विपक्षी नेताओं की एकजुटता सिर्फ सोनिया गांधी के प्रति सम्मान का नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत थी। विपक्ष को चुनाव में एकजुट होने की जरूरत है, और सोनिया गांधी की उपस्थिति उस एकजुटता का प्रतीक है। यह एक निजी अवसर था, लेकिन इसका राजनीतिक संदेश स्पष्ट था।

क्या सोनिया गांधी अभी भी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं?

नहीं, वह 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपने पद से इस्तीफा दे चुकी हैं। लेकिन वह अभी भी कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष हैं और राज्यसभा की सांसद हैं। उनकी राजनीतिक भूमिका अब अधिक सलाहकारी है, लेकिन उनका प्रभाव अभी भी गहरा है।

'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत कब बनाया गया?

'वंदे मातरम्' को 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया। 1950 में भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A में इसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी गई। यह गीत राष्ट्रीय गान नहीं है — वह 'जय हिंद' है — लेकिन इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में देश भर में सम्मानित किया जाता है।

सोनिया गांधी का जन्म कहाँ हुआ था?

सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसंबर 1946 को इटली के टोरिन शहर में हुआ था। उनके माता-पिता सिल्वियो माइनो और एडेला गियानी इटली के निवासी थे। वह 1964 में भारत आईं और फिर 1968 में राजीव गांधी से विवाह किया। उन्होंने भारतीय नागरिकता ग्रहण की और अपने जीवन को भारत के लिए समर्पित कर दिया।

क्या सोनिया गांधी ने कभी प्रधानमंत्री बनने का इरादा रखा?

हाँ, 2004 में लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की जीत के बाद, उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का अवसर मिला। लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। उनका यह निर्णय उनकी व्यक्तिगत चुनौतियों और देश की राजनीतिक स्थिति के आधार पर लिया गया था, और इसे उनकी नैतिक ताकत का प्रतीक माना जाता है।