RBI के नए नियम: ईएमआई पर खरीदे फोन डिफॉल्ट पर दूर से लॉक होंगे
16 सितंबर 2025

भारत में हर तीसरा कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट EMI पर बिक रहा है। ऐसे समय में केंद्रीय बैंक उन नियमों की तरफ लौट रहा है जिन्हें उसने इस साल की शुरुआत में रोक दिया था—डिफॉल्ट पर EMI से खरीदे गए स्मार्टफोन को दूर से लॉक करने का अधिकार। यह कदम खराब होते छोटे टिकट कर्जों पर लगाम लगाने की कोशिश है, और साथ-साथ यह कसौटी भी कि उपभोक्ता के अधिकार और डेटा सुरक्षा कहां तक सुरक्षित रहेंगे।

RBI आने वाले महीनों में अपने फेयर प्रैक्टिसेज कोड में बदलाव जोड़ने की तैयारी में है। संकेत साफ हैं—फोन लॉकिंग कोई खुली छूट नहीं होगी, बल्कि सख्त शर्तों, पारदर्शी सहमति और सीमित दायरे के साथ लागू होगी। बैंकों और NBFCs के लिए यह एक अतिरिक्त टूल है; उपभोक्ताओं के लिए यह कर्ज अनुशासन का नया नियम-पुस्तक।

क्या बदलेगा: नियम, मैकेनिज़्म और सुरक्षा लाइनें

फोन लॉक करने का मैकेनिज़्म खरीद के वक्त इंस्टॉल रहे प्रमाणित ऐप्स के जरिए काम करता है—जैसे Google Device Lock Controller, सैमसंग के लिए Samsung Finance+ या चुनिंदा थर्ड-पार्टी सॉल्यूशंस। डिफॉल्ट की स्थिति में ये ऐप्स डिवाइस के कोर फंक्शंस पर लॉक लगाते हैं, लेकिन आपात कॉल की सुविधा चालू रहती है। उद्देश्य यह है कि फोन डेटा तक किसी की पहुंच न बने, सिर्फ डिवाइस का उपयोग रोका जाए।

ड्राफ्ट फ्रेमवर्क का सबसे बड़ा स्तंभ है स्पष्ट सहमति। कर्ज दस्तावेजों, ऐप स्क्रीन और ऑन-बोर्डिंग के दौरान उधारकर्ता से पूर्व-स्वीकृति लेनी होगी—लिखित, रिकॉर्डेड या डिजिटल लॉग में। सहमति भाषा में साफ होनी चाहिए, बिना छुपे हुए चेकबॉक्स और बिना उलझे कानूनी जार्गन के। इससे भविष्य में विवाद की स्थिति—जैसे उपभोक्ता का कहना कि उसे पता ही नहीं था—कम होगी।

लॉकिंग को अंतिम उपाय के रूप में परिभाषित किया जा रहा है, खासकर 1 लाख रुपये से कम के कर्जों के लिए जिनमें डिफॉल्ट दर अधिक दिखती है। इसका मतलब यह नहीं कि एक किस्त चूकते ही फोन बंद—पहले रिमाइंडर, ग्रेस पीरियड, कॉल/ईमेल/एसएमएस के जरिए नोटिस, फिर एक अंतिम चेतावनी। इसके बाद भी भुगतान नहीं होने पर ही लॉक ट्रिगर होगा।

डिवाइस लॉक के बावजूद कुछ बुनियादी सुविधाएं चालू रहनी चाहिए—आपात कॉल, और जरूरत के मुताबिक सीमित सेटिंग्स ताकि उपयोगकर्ता सपोर्ट से बात कर सके और भुगतान के बाद अनलॉक प्रक्रिया पूरी कर सके। नियम प्रस्तावित करते हैं कि लॉकिंग का असर उपभोक्ता के व्यक्तिगत डेटा पर न पड़े—न फोटो तक पहुंच, न संदेशों या ऐप कंटेंट की कोई स्कैनिंग।

डेटा सुरक्षा पर रेखा मोटी खिंची है: ऋणदाता या उनके टेक पार्टनर यूजर डेटा तक पहुंच नहीं रखेंगे। ऐप का रोल सिर्फ लॉक/अनलॉक तक सीमित रहेगा। तकनीकी रूप से इसका मतलब है—नो डेटा एक्सफिल्ट्रेशन, सीमित परमिशन, और स्वतंत्र सिक्योरिटी ऑडिट। जो भी कंपनी लॉकिंग सॉल्यूशन दे, उसे यह दिखाना होगा कि सिस्टम से डेटा बाहर नहीं जा सकता।

पारदर्शिता दूसरे स्तंभ के रूप में उभर रही है। उधारकर्ता को पहले दिन से बताया जाएगा कि लॉक कब और कैसे लग सकता है, अनलॉक की शर्तें क्या हैं, भुगतान के कितने समय बाद फोन खुल जाएगा, और शिकायत दर्ज कराने का तरीका क्या है। जहां भाषा की बाधा है, वहां स्थानीय भाषा में स्पष्टीकरण, और जहां डिजिटल साक्षरता कम है, वहां सरल, विजुअल-फर्स्ट वर्कफ्लो अपेक्षित है।

इम्प्लीमेंटेशन की जमीन पर कुछ सवाल स्वाभाविक हैं। क्या फोन ऑफलाइन रहेगा तो लॉक कैसे लगेगा? अधिकतर ऐप्स अगली बार इंटरनेट कनेक्शन मिलते ही लॉक पॉलिसी लागू करते हैं। क्या सिम बदलने से बचा जा सकता है? आम तौर पर लॉकिंग डिवाइस-स्तर पर होती है, केवल सिम-स्तर पर नहीं, इसलिए सिम बदलने से राहत नहीं मिलती।

एक और ऑपरेशनल हिस्सा—अनलॉक की समयसीमा। भुगतान के बाद अनलॉक देरी से हुआ तो नुकसान उपभोक्ता का। इसलिए टाइम-बाउंड SLA जरूरी हैं, जैसे भुगतान की पुष्टि के कुछ घंटों में फोन खुलना। बड़े पैमाने पर अपनाने से पहले यह छोटा-सा डिटेल सबसे ज्यादा शिकायतें रोक सकता है।

गुम या चोरी हुए फोन के मामलों में जिम्मेदारी किसकी? लॉजिक्स साफ होने चाहिए—बीमा क्लेम, FIR, और कर्ज खाते की स्थिति के आधार पर तय होगा कि लॉक हटे या कायम रहे। सेकंड-हैंड बिक्री का मामला भी जुड़ा है—यदि EMI चालू है और फोन बेच दिया गया, तो नया उपयोगकर्ता लॉक में फंस सकता है। इसलिए IMEI-लिंक्ड कर्ज स्टेटस की पारदर्शिता सेकेंडरी मार्केट के लिए अहम है।

लोगों और उद्योग पर असर: फायदे, जोखिम और आपकी चेकलिस्ट

लोगों और उद्योग पर असर: फायदे, जोखिम और आपकी चेकलिस्ट

लेंडर्स के नजरिए से देखें तो छोटे कर्जों में बुरा कर्ज बढ़ना सबसे बड़ा दर्द है। फोन लॉकिंग से वसूली का दबाव बढ़ता है, इसलिए घाटा कम हो सकता है और आगे चलकर ब्याज दरों में कुछ नरमी की गुंजाइश भी बन सकती है। साथ ही, अगर नुकसान घटे तो रिस्क-आधारित प्राइसिंग में जिम्मेदार उधारकर्ताओं को बेहतर डील मिलना आसान होगा।

उपभोक्ता पक्ष में तस्वीर उतनी सरल नहीं। स्मार्टफोन आज रोज़गार, बैंकिंग, शिक्षा और हेल्थ सेवाओं का प्रवेश-द्वार है। लंबा लॉक डिजिटल बहिष्कार जैसा असर डाल सकता है—डिलीवरी पार्टनर ऑर्डर नहीं उठा पाएगा, छात्र की ऑनलाइन क्लास छूट जाएगी, UPI भुगतान रुक जाएगा। इसलिए दायरा सीमित रखना, आपात सुविधाएं चालू रखना और जल्दी अनलॉक करना सिर्फ नियम नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी भी है।

दुरुपयोग की आशंका पर बहस तेज है। गलत खाते पर लॉक, समय से पहले ट्रिगर, या झगड़े की स्थिति में मनमानी—ये जोखिम वास्तविक हैं। इन्हें रोकने के लिए ऑटोमेटेड चेकलिस्ट, मल्टी-लेवल अप्रूवल, और हर लॉक-इवेंट का ऑडिट ट्रेल जरूरी है। जितनी सटीक लॉगिंग होगी, उतनी ही जल्दी विवाद सुलझेंगे।

फाइन-प्रिंट में भाषा और सहमति को लेकर भी सतर्कता जरूरी है। सहमति फॉर्म छोटे, स्पष्ट और बहुभाषी हों; डार्क पैटर्न—जैसे प्री-टिक बॉक्स—से बचा जाए। अगर उपभोक्ता ने लॉकिंग से इनकार किया, तो लेंडर को वैकल्पिक शर्तें पेश करनी चाहिए—उदाहरण के लिए थोड़ा अधिक डाउन पेमेंट या अलग ब्याज।

डिवाइस मैन्युफैक्चरर्स और ऐप डेवलपर्स के लिए यह मौका और जिम्मेदारी दोनों है। सिस्टम-लेवल इंटीग्रेशन से अनुभव स्मूद हो सकता है—किसी खास ब्रांड के फोन में लॉकिंग और अनलॉकिंग अधिक भरोसेमंद चलेगी। पर इससे एक नया जोखिम भी आता है—वेंडर लॉक-इन। इसलिए क्रॉस-ब्रांड इंटरऑपरेबिलिटी और स्टैंडर्ड API का रास्ता बेहतर होगा।

सेकेंड-हैंड मार्केट पर असर अलग तरह का होगा। EMI चालू फोन बेचना वैसे भी जोखिम भरा है; अब लॉकिंग के चलते खरीदार-सेलर दोनों सतर्क रहेंगे। प्लेटफॉर्म्स को यह दिखाना पड़ेगा कि फोन पर कोई बकाया-लोन तो एक्टिव नहीं। लंबी अवधि में इससे सेकेंड-हैंड इकोसिस्टम कुछ अधिक व्यवस्थित भी हो सकता है।

उद्योग के लिए लागत-लाभ का समीकरण भी ध्यान देने योग्य है। लॉकिंग सॉल्यूशन, ग्राहक सपोर्ट, विवाद निवारण डेस्क, और सिक्योरिटी ऑडिट—ये सब खर्चे हैं। लेकिन अगर वसूली सुधरती है और प्रावधान कम होते हैं, तो नेट-इफेक्ट सकारात्मक रह सकता है।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी इशारा देता है। कई बाजारों में टेलीकॉम ऑपरेटर लंबे समय से सिम-लॉकिंग या कॉन्ट्रैक्ट-आधारित डिवाइस प्रतिबंध का इस्तेमाल करते रहे हैं। भारत में मॉडल अलग है—यहां फोकस फाइनेंसिंग कंपनी पर है, न कि टेलीकॉम पर—पर सिद्धांत वही हैं: अनुबंध का पालन न होने पर डिवाइस का उपयोग सीमित।

आगे क्या देखना चाहिए? कुछ संकेतक नीतिगत असर बतायेंगे—छोटे कर्जों की डिफॉल्ट दर, लॉकिंग-सम्बंधी शिकायतों की संख्या, अनलॉक की औसत समयसीमा, और डेटा-प्राइवेसी उल्लंघन की घटनाएं। इन पर आवधिक रिपोर्टिंग भरोसा पैदा करेगी। जहां शिकायत बढ़े, वहां तुरंत सुधार—चाहे वह नोटिस अवधि बढ़ाने का मामला हो, या सपोर्ट कैपेसिटी जोड़ने का।

उधारकर्ताओं के लिए एक छोटी-सी चेकलिस्ट मददगार रहेगी:

  • लोन एग्रीमेंट में लॉकिंग से जुड़े क्लॉज ध्यान से पढ़ें—कब, कैसे, कितने दिनों बाद लॉक लगेगा।
  • सहमति देते समय स्क्रीनशॉट और ईमेल कॉपी संभालकर रखें; विवाद में यही सबसे बड़ा सबूत है।
  • जिस ऐप से लॉकिंग होगी, उसकी परमीशन देखें—कॉन्टैक्ट्स/फोटो तक पहुंच नहीं होनी चाहिए।
  • बकाया चूकने की आशंका दिखे तो पहले ही लेंडर से ग्रेस पीरियड या रीस्ट्रक्चरिंग पर बात करें।
  • भुगतान के बाद अनलॉक देरी से हो तो टिकट नंबर लेकर फॉलो-अप करें; आवश्यकता हो तो बैंकिंग ओम्बड्समैन/ग्रिविएंस पोर्टल पर शिकायत करें।

तकनीकी गलत-सकारात्मक से भी इंकार नहीं—गलत EMI टैगिंग, बैकएंड रिस्पॉन्स में देरी, या पेमेंट गेटवे में लैग। इसलिए लेंडर्स को पेमेंट-रिकॉन्सिलिएशन रीयल-टाइम के जितना करीब संभव हो बनाना चाहिए। अनलॉक के लिए ऑटो-ट्रिगर और बैकअप मैन्युअल ओवरराइड—दोनों चैनल रखें।

एक नैतिक प्रश्न भी है—डिजिटल लाइफलाइन को रोकना कितना उचित? जवाब संतुलन में है। सीमित दायरा, अंतिम उपाय, आपात सुविधाएं चालू, और तेज़ अनलॉक—इन चार शर्तों के साथ यह टूल अनुशासन बनाता है, दंड नहीं। असली परीक्षा अमल की है: क्या अनुपातिकता बनी रहती है, और क्या उपभोक्ता को सुना जाता है।

अभी तस्वीर विकसित हो रही है। ड्राफ्ट से फाइनल नियम तक उद्योग और नागरिक समूह फीडबैक देंगे—सहमति के स्वरूप, नोटिस की न्यूनतम अवधि, लॉक-इवेंट लॉगिंग, और शिकायत निवारण की SLA जैसे मुद्दों पर। जितनी बारीकी यहां तय होगी, उतनी ही कम रस्साकशी बाद में दिखेगी। फोन हमारे लिए सिर्फ गैजेट नहीं, पहचान और काम का औजार है—नियम भी उसी संवेदना से बनें, यही उम्मीद है।