म्यांमार में 7.7 तीव्रता का भूकंप: 144 की मौत, विनाश के बीच छुपा इतिहास भी उजागर
20 अप्रैल 2025

म्यांमार का दिल दहला देने वाला भूकंप

म्यांमार के मध्य हिस्से में 28 मार्च, 2025 को 7.7 तीव्रता का भयावह भूकंप आया, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इसका केंद्र सागाइंग के नजदीक, मांडले के पास सिर्फ 10 किलोमीटर गहराई पर था। इतनी सतही गहराई पर हुआ ये भूकंप व्यापक तबाही की वजह बना। शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक, 144 लोग मारे गए हैं जबकि ये संख्या बढ़ती ही जा रही है।

भूकंप के झटकों ने शहरों को खौफ में डाल दिया। नायपीडॉ, मांडले और आस-पास के गांवों में मकान, सड़कें, पुल और ऐतिहासिक स्तूप या पगोडा रातोंरात मलबे में तब्दील हो गए। कई अस्पतालों की इमारतें कमजोर पड़ गईं, जिससे घायलों के इलाज में भारी दिक्कत आई। हजारों लोगों को घर छोड़ना पड़ा और वे अस्थायी तंबू व शरणस्थलों में सिसकते देखे गए।

इस धरती के कंपन की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि इसके झटके थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक से लेकर, दक्षिण-पश्चिमी चीन तक महसूस किए गए। महज दो घंटे में 6.4 तीव्रता का आफ्टरशॉक भी आया, जिसने रेस्क्यू ऑपरेशन और लोगों में डर दोनों को बढ़ा दिया।

मानवीय संकट, राहत में बाधा और इतिहास की नई परत

भूकंपीय त्रासदी का म्यांमार फिलहाल पहले से ही जारी गृहयुद्ध, राजनीतिक उथल-पुथल और आर्थिक मंदी से गुजर रहा था। ऐसे में स्थानीय प्रशासन और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के लिए राहत मुहैया कराना कड़ी चुनौती साबित हो रहा है। सड़कों के टूटने से कई इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाना कठिन होता दिखा। चिकित्सा केंद्रों में घायलों की तादाद इतनी बढ़ गई कि कई डॉक्टर बस प्राथमिक इलाज देकर अगला मरीज देखने को मजबूर हो गए।

म्यांमार के मौसम का मिजाज इस वक्त राहत के बिल्कुल खिलाफ है। तेज बारिश ने तंबू में रह रहे हजारों बेघर लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। गंदगी, पानी और साफ सुविधाओं की कमी से बीमारियों का खतरा मंडराने लगा है।

  • इतने बड़े आपदा के बीच तड़ा-यू टाउनशिप में एक और चौंकाने वाली खोज हुई। जहां धरती फटी, वहीं मिट्टी के नीचे छुपा एक प्राचीन निर्माण सामने आ गया। शुरुआती जांच में इसे कोनबांग वंश के शाही वास्तुकला से जोड़ा जा रहा है। ईंटों से बने प्लेटफार्म और सीढ़ियां देखकर इतिहासकारों की दिलचस्पी और बढ़ गई है। वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों की टीम वहां पहुंच गई है ताकि पता लगाया जा सके ये धरोहर आखिर थी क्या।

अब तक राहत के लिए कुछ अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां म्यांमार पहुंच चुकी हैं, लेकिन जमीन पर हालात बेहद मुश्किल हैं। सड़कों पर सेना और विद्रोही गुटों की मौजूदगी, लगातार हो रहे छोटे-छोटे भूकंप और मौसम की मार ने इंसानियत के लिए हर मोर्चे पर परीक्षा खड़ी कर दी है। लंबे वक्त तक जिंदगी पटरी पर लौटेगी, इसकी गारंटी अब कोई नहीं दे सकता।