मणिपुर में फिर भड़की साम्प्रदायिक हिंसा
उत्तर-पूर्व के अद्वितीय राज्यों में गिने जाने वाले मणिपुर राज्य में हालिया हिंसा ने एक बार फिर वहाँ की सदियों पुरानी गठजोड़ों और तनावों की पेचीदगियों को उजागर कर दिया है। मणिपुर के कांगपोकपी जिले में संगठनों के बीच विगत सप्ताहांत जो टकराव शुरू हुए, उन्होंने 23 गिरफ्तारियां और अनेक घायल लोगों के साथ व्यापक घरों के विनाश को जन्म दिया है। कुकी और मेइतेई समुदायों के बीच यह संघर्ष अचानक अपना सिर उठा लिया। विवाद की जड़ें भूमि स्वामित्व और पहचान के मुद्दों में निहित प्रतीत होती हैं।
कर्फ्यू और अस्थिर स्थिति का आयाम
वर्तमान में, कुकी और मेइतेई के बीच संघर्षशीलता ने प्रशासन के सामने एक बड़ा चुनौती उत्पन्न कर दी है। राज्य के प्रमुख नितिन बिरें सिंह ने शांति की अपील करते हुए अपने कड़ी कदम उठाए हैं। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दी है और पाँच से अधिक व्यक्तियों के एकत्र होना प्रतिबंधित कर दिया है। हिंसा के लिए जिम्मेदार तत्वों की धरपकड़ में तेजी लाई गई है, जिसके कारण 23 व्यक्तियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इसके बावजूद, वहाँ की स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है। इसके चलते अधिक सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है।
लोक प्रशासन और सरकार की भूमिका
इस सबसे उभरती समस्या के लिए मणिपुर में सरकार और प्रशासन की भूमिका कठघरे में खड़ी है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, केंद्र सरकार की रणनीति पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रशासन इस प्रकार के समाजिक संघर्षों के मूल कारणों को नकार कर, उन्हें समय के साथ बढ़ाने की ओर धकेलता जा रहा है। विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने उकसर आरोप लगाया है कि सरकार इन मुद्दों का आवश्यक तरीके से समाधान करने में विफल रही है। उन्हों ने हिंसा से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की माँग की।
सामुदायिक स्वायत्तता और रणनीति
कुकी समुदाय द्वारा उनकी स्वायत्तता और पहचान के लिए की गयी मांगों साथ ये हिंसा और गहराता जा रहा है। कुकी समुदाय लंबे समय से अधिक स्वायत्तता और अधिकारों की मांग करता आ रहा है, जिसे बड़े कुश्ती के रूप में देखा जा रहा है। वहींं, मेइतेई समुदाय, जो मणिपुर का सबसे बड़ा जातीय समुदाय है, कुकी की मांगों का विरोध कर रहा है। यह मामला राज्य की राजनीतिक स्थिरता के लिए एक सटीक चुनौती बन गया है। ऐसी स्थितियों में, सही निर्णय और दूरदृष्टि ही समुदायों के बीच की खाईयों को भर सकती है।
संघर्ष में सामाजिक मुद्दों की भूमिका
अन्य समाजों की तरह मणिपुर की भूमि और पहचान की राजनीति भी कथित रूप से आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की पैठ में है। भूमि पर अधिकार और साम्प्रदायिक पहचान की ये लड़ाई व्यक्तिगत अस्मिता के लिए बढ़ते हुए दावों के समान लगती है। यह एक दुष्चक्र का संकेत है, जो अपनी मजबूत पकड़ में समुदायों के बीच अविश्वास और शत्रुता को बढ़ावा देता है। मणिपुर के हिंसा की यह घटना यह दिखलाती है कि सांप्रदायिक मतभेद और कठिनाइयाँ किस प्रकार स्थायी तनाव और संगठनों के बीच गहराए संघर्षों में परिवर्तित हो सकती हैं।
फिलहाल, जो बात आवश्यक है, वो है प्रशासनिक सजगता, लंबी अवधि में शांति स्थापना का रणनीतिक दृष्टिकोण और समुदायों के बीच कल्याणकारी संवाद की प्रक्रिया की पहल।