जब पंडित गुलशन अग्रवाल ने इंदौर के जय महाकाली मंदिर से जाहीर किया कि दिवाली 2023 12‑13 नवम्बर को मनाई जाएगी, तो लाखों श्रद्धालुओं की उत्सुकता बढ़ गई। इस वर्ष कार्तिक अमावस्या के विशेष मुहूर्त, स्वाति नक्षत्र और आयुष्मान योग का संयोग है, जिसके कारण लक्ष्मी पूजन का समय सबसे अनुकूल बताया गया है।
दिवाली 2023 का समय‑तालिका: कब, कहाँ और क्यों
यह पर्व कार्तिक माह की अमावस्या पर पड़ता है, और 2023 में वह 12 नवम्बर (रविवार) को दोपहर 2:30 से 2:45 बजे तक शुरू होती है। इसके बाद की दोपहर 13 नवम्बर को 2:56 से 2:57 बजे तक उसका प्रभाव जारी रहता है। इस दो‑दिन की अवधि को 'प्रदोष काल' और 'महानिशीथ काल' से घेरा गया है, जो ज्योतिषी मानते हैं सबसे शुभ समय हैं।
पंडित गुलशन अग्रवाल का ज्योतिषीय विश्लेषण
पंडित गुलशन अग्रवाल ने बताया कि इस वर्ष स्वाति नक्षत्र के साथ आयुष्मान योग का संयोग है, जिससे आर्थिक लाभ और स्वास्थ्य में वृद्धि की संभावना बढ़ती है। उन्होंने कहा, "जब सायंकाल में अमावस्या आती है, तब दीप और लक्ष्मी पूजन दोनों करना चाहिए, तभी फल मिलते हैं।" इस कथन में उन्होंने इंदौर के स्थानीय समय को ध्यान में रखकर मुहूर्त चुने हैं।
लक्ष्मी पूजन के प्रमुख मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे योग्य समय निशिता काल माना जाता है, जो 13 नवम्बर को रात 11:39 से प्रातः 12:32 तक चलता है (52 मिनट)। इसके अलावा महानिशीथ काल (11:39 से 12:31) और सिंह काल (12:12 से 02:30) भी लाभदायक हैं। नीचे विस्तृत तालिका दी गई है:
- अपराह्न मुहूर्त (शुभ): 01:26 से 02:47
- सायंकाल मुहूर्त (शुभ‑अमृत‑चल): 05:29 से 10:26
- रात्रि मुहूर्त (लाभ): 01:44 से 03:23
- उषाकाल मुहूर्त (शुभ): 05:02 से 06:41
एक अन्य विश्वसनीय स्रोत ने बताया कि शाम 05:19 से 07:00 तक का समय भी लक्ष्मी पूजन के लिए उत्तम है, जिसकी अवधि लगभग 1 घंटा 54 मिनट है।

धार्मिक एवं सामाजिक महत्व
सनातन धर्म में दिवाली के बिना लक्ष्मी पूजा अधूरी मानी जाती है। मां लक्ष्मी, शुक्र ग्रह से जुड़ी हुई हैं, और उनके चरणों में शिल्प और व्यवसायियों का विश्वास अटल रहता है। पंडित गुलशन अग्रवाल ने कहा, "लक्ष्मी पूजन से केवल धन नहीं, बल्कि नाम‑यश और दाम्पत्य जीवन की सामंजस्य भी मिलती है।" इस वर्ष बड़ी संख्या में परिवार अपने घरों को दीपों से सजाएंगे, और ज्ञात है कि शहर‑जिला में पिचकारी और जलराशि की बचत के लिए जागरूकता भी बढ़ रही है।
आगे क्या? 2024 के लिए तजुर्बे और सुझाव
ज्योतिषी यह सलाह देते हैं कि अगले साल की दिवाली के लिए भी कार्तिक अमावस्या के मुहूर्त को ध्यान में रख कर योजना बनानी चाहिए। पंडित गुलशन अग्रवाल ने सुझाव दिया कि यदि कोई 2024 में दिवाली पर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, तो उसे पहले स्वस्तिक योग और बृहस्पति की शांति को अपनाना चाहिए, फिर लक्ष्मी पूजन के लिए निशिता काल का उपयोग करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
दिवाली के किस दिन लक्ष्मी पूजन सबसे शुभ है?
पंडित गुलशन अग्रवाल के अनुसार, 13 नवम्बर को रात 11:39 से 12:32 तक का निशिता काल सबसे प्रमुख है, क्योंकि यह समय शांति और समृद्धि दोनों का प्रतीक है।
स्वाति नक्षत्र और आयुष्मान योग का मतलब क्या है?
स्वाति नक्षत्र शुद्धता और धन की प्रतीक्षा करता है, जबकि आयुष्मान योग स्वास्थ्य व आयु में वृद्धि का संकेत देता है। इन दोनों का संयोग इस वर्ष के दिवाली को विशेष रूप से लाभदायक बनाता है।
दिवाली के समय किन व्रतों से बचना चाहिए?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि अमावस्या के दिन चंद्रमा पूर्ण तरंग में नहीं हो, तो तेज़ी से किया गया कोई भी व्रत असफल हो सकता है। इसलिए पंडितों की सलाह है कि केवल निर्धारित मुहूर्त में ही व्रत रखें।
क्या दीर्घकालिक लाभ के लिए कोई विशेष पूजा विधि है?
लक्ष्मी और गणेश दोनों की एक साथ पूजा करने से धन के स्रोत खुलते हैं, ऐसा पंडित गुलशन अग्रवाल कहते हैं। यह विधि विशेष रूप से व्यापारियों और नए उद्यमियों को सलाह दी जाती है।
दिवाली के बाद आर्थिक सफलता की कसौटी क्या है?
ज्योतिषी मानते हैं कि यदि अनुशासन और दान‑धर्म का पालन लगातार किया जाये, तो दिवाली के बाद की पहली तिमाही में आय में 10‑15 % तक वृद्धि देखी जा सकती है।
1 टिप्पणि
Ramalingam Sadasivam Pillai
अक्तूबर 22, 2025 AT 19:15 अपराह्नजैसे पण्डित ने कहा, दिवाली का समय केवल पावन नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का भी अवसर है। जब कार्तिक अमावस्या और स्वाति नक्षत्र का संगम होता है, तो यह संकेत देता है कि नए आरम्भ में ऊर्जा का स्राव अधिक होता है। आयुष्मान योग का साथ होने से जीवन के प्रत्येक पहलू में वृद्धि की संभावना प्रकट होती है। यह योग न केवल आर्थिक लाभ बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार लाता है। इसलिए इस मुहूर्त को अपनाना व्यक्तिगत विकास की कुंजी बन सकता है।
दिवाली के समय में निशिता काल, महानिशीथ तथा सिंह काल को लेकर पण्डित ने जो विशेष उल्लेख किया, वह समय‑सापेक्षता की गहरी समझ दर्शाता है। इस प्रकार के समय‑तालिका से हम अपने कार्यों को अधिक प्रभावी बना सकते हैं।
समाज में जल संरक्षण के जागरूकता का उल्लेख भी किया गया, जो दिखाता है कि धार्मिक आयोजन भी पर्यावरणीय जिम्मेदारी से जुड़े हो सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब धरती पर आर्थिक गतिविधियों की गति तेज होती है, तो स्वस्तिक योग को प्राथमिकता देना उचित रहता है।
यदि हम इस वर्ष के विशेष मुहूरत को समझ कर अपने वित्तीय निर्णय लेते हैं, तो दीर्घकालिक लाभ निश्चित है।
आगे आने वाले वर्ष में यदि कोई आर्थिक बाधा का सामना करता है, तो बृहस्पति की शांति को अपनाकर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
ध्यान रखें, केवल समय ही नहीं, बल्कि हमारी सोच और कर्म भी परिणाम निर्धारित करते हैं।
हर परिवार को चाहिए कि वह अपने घर को दीपों से सजाते समय सकारात्मक विचारों को भी उज्ज्वल करे।
यह तो केवल परम्परा नहीं, बल्कि मन के आभा को भी साफ़ करने की प्रक्रिया है।
दिवाली के बाद की पहली तिमाही में यदि हम दान‑धर्म को निरंतरता से पालन करते हैं, तो आय में 10‑15 प्रतिशत वृद्धि देखी जा सकती है।
रविवार को दोपहर दो बजकर तीस मिनट से दो बजे तक का समय, जैसा कि कहा गया, विपरीत परिस्थितियों में भी हमें साहस देता है।
साथ ही, प्रातःकाल के उज्ज्वल सायंकाल को न भूलें, क्योंकि यह ऊर्जा का दूसरा स्रोत है।
सारांश में, इस वर्ष की दिवाली हमें समय‑सजगता और आध्यात्मिक संतुलन की सीख देती है।
आइए हम सभी इस ज्ञान को अपनाकर अपने घरों और मन को उज्ज्वल बनायें।