23 नवंबर 2025 को, इथियोपिया के अफ़ार इलाके में स्थित हेली गुब्बी शील्ड ज्वालामुखी ने 12,000 साल की निष्क्रियता के बाद अचानक फट दिया। यह विस्फोट इतना भयानक था कि उससे उठा राख का गुबार 14 किलोमीटर (45,000 फीट) ऊंचाई तक पहुंचा — इतना ऊंचा कि यह जेट स्ट्रीम के बादलों के साथ उड़ने लगा। और फिर... यह भारत तक पहुंच गया। लगभग 54 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला यह राख का बादल, ऑस्ट्रेलिया के समान आकार का है। लेकिन अच्छी खबर? सतह पर कोई खतरा नहीं। कोई जान-माल की हानि नहीं। बस आकाश में एक अजीब सी धुंध, और हवाई यात्रा में थोड़ा अड़चन।
कैसे फैला राख का गुबार? एक वैज्ञानिक सफर
ज्वालामुखी विस्फोट के तुरंत बाद, राख का गुबार पूर्व की ओर बहने लगा। लाल सागर के ऊपर से गुजरा, यमन और ओमान के आकाश को छूया, फिर अरब सागर के ऊपर से होते हुए भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, यह गुबार 24 नवंबर को राजस्थान में दिखा, और 25 नवंबर तक दिल्ली, जयपुर, जैसलमेर, पंजाब और हरियाणा के आकाश में फैल गया। वैज्ञानिक राधेश्याम शर्मा कहते हैं, "यह राख इतनी ऊंचाई पर है कि यह हवा के साथ बह रही है, न कि जमीन पर बैठी है।" यानी, आपकी सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
हवाई यात्रा में उलट-पुलट
लेकिन उड़ानें देख रहीं थीं दुख। कोच्चि हवाई अड्डा से जेद्दा और दुबई की दो अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द हो गईं। 25 नवंबर को दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक, सात और उड़ानें — आगमन और प्रस्थान दोनों — रद्द कर दी गईं। एयर इंडिया ने बयान देकर कहा कि वे इथियोपियाई ज्वालामुखी के राख के बादलों को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनके ऑपरेशन पर कोई गंभीर असर नहीं पड़ा। Toulouse Volcanic Ash Advisory Centre (VAAC) हर घंटे अपडेट दे रहा है। फ्लाइटराडार24 के डेटा के मुताबिक, राख का बादल अभी उत्तरी भारत के ऊपर है, लेकिन तेजी से चीन की ओर बढ़ रहा है।
चीन के लिए बढ़ता खतरा, भारत के लिए राहत
अगर आप सोच रहे हैं कि भारत बच गया, तो आप सही हैं। लेकिन चीन के लिए बात अलग है। राख का बादल अब तिब्बत के ऊपर से गुजर रहा है, और जल्द ही शानदार शहरों जैसे बीजिंग और शंघाई के आकाश में पहुंच सकता है। यहां खतरा अधिक है क्योंकि वहां की हवाएं कमजोर हैं, और राख लंबे समय तक टिक सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इथियोपिया के इस ज्वालामुखी का फटना, जो होलोसीन पीरियड (12,000 साल) में पहली बार सक्रिय हुआ, एक दुर्लभ घटना है। ऐसा कुछ अब तक नहीं हुआ।
स्मॉग के लिए एक अच्छी खबर? बारिश की उम्मीद
राख के साथ आई सल्फर डाइऑक्साइड गैस ने एक अनपेक्षित फायदा भी दिखाया है। इंडियामेटस्काई के अनुसार, यह गैस 27-28 नवंबर 2025 को हल्की बारिश ला सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो दिल्ली का स्मॉग — जो अभी तक शहर को घेरे हुए है — धुल जाएगा। यह एक अजीब तरह का अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है: एक अफ्रीकी ज्वालामुखी, जो भारत की हवा की गुणवत्ता में सुधार कर रहा है। नासा की सैटेलाइट तस्वीरें साफ दिखा रही हैं कि राख 8-15 किमी की ऊंचाई पर है, जो वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के लिए अनदेखी है।
अब क्या होगा? अगले कदम
27 नवंबर तक राख का गुबार कम होने लगेगा। 28 नवंबर तक, सब कुछ पूरी तरह सामान्य हो जाएगा। वैज्ञानिक अब इस घटना के जलवायु पर असर की जांच कर रहे हैं। क्या इस राख ने वैश्विक तापमान पर थोड़ा सा असर डाला? क्या यह अगले साल के बरसात के पैटर्न को बदलेगा? अभी तक कोई निश्चित जवाब नहीं। लेकिन एक बात स्पष्ट है — यह ज्वालामुखी ने सिर्फ राख नहीं बिखेरी, बल्कि हमें याद दिलाया कि पृथ्वी की शक्तियां कितनी अनियंत्रित हैं।
प्रश्न और उत्तर
हेली गुब्बी ज्वालामुखी क्यों 12,000 साल बाद फटा?
वैज्ञानिकों के अनुसार, इथियोपिया के अफ़ार त्रिकोण में भूतापीय दबाव लगातार बढ़ रहा था। इस इलाके में धरती की परतें अलग हो रही हैं, जिससे मैग्मा ऊपर की ओर धकेला जा रहा था। 12,000 साल तक यह दबाव संतुलित रहा, लेकिन अब एक छोटी भूकंपीय गतिविधि ने इस तनाव को तोड़ दिया। यह एक अचानक घटना नहीं, बल्कि लंबे समय की जमा हुई ऊर्जा का विस्फोट था।
भारत में राख का गुबार क्यों खतरनाक नहीं है?
राख 8-15 किमी की ऊंचाई पर है — जहां विमान उड़ते हैं, लेकिन हम सांस लेते हैं। यह बादल वायुमंडल के ऊपरी स्तर में है, जहां हवाएं तेज हैं और राख तेजी से बह जाती है। सतह पर राख की मात्रा इतनी कम है कि यह धूल की तरह नजर आती है, न कि खतरा। IMD ने भी घोषणा की है कि AQI में कोई बदलाव नहीं होगा।
हवाई उड़ानें क्यों रद्द हुईं?
ज्वालामुखी राख विमान के इंजन में घुलकर उन्हें बर्बाद कर सकती है। यह गर्म होकर धातु के जैसे जम जाती है, जिससे इंजन बंद हो सकता है। इसलिए, एयर लाइन्स राख के बादल के नीचे से उड़ान भरने से बचती हैं। कोच्चि से जेद्दा और दुबई की उड़ानें रद्द हुईं क्योंकि उनके रूट बादल के ऊपरी हिस्से से गुजर रहे थे।
क्या यह घटना जलवायु पर असर डालेगी?
इस विस्फोट से निकली सल्फर डाइऑक्साइड गैस बादल बनाकर सूरज की किरणों को परावर्तित कर सकती है, जिससे अस्थायी ठंडक आ सकती है। लेकिन यह विस्फोट विशाल नहीं है — जैसे 1991 का पिनातुबो या 1815 का टंबोरा। इसलिए, वैश्विक तापमान पर कोई निरंतर असर नहीं होने की उम्मीद है। यह एक वैश्विक घटना है, लेकिन न कोई जलवायु आपातकाल।
क्या भारत में बारिश होगी और कैसे?
हां, अगर सल्फर डाइऑक्साइड गैस बादलों में बदल गई, तो 27-28 नवंबर को हल्की बारिश हो सकती है। यह बारिश न केवल धूल को धोएगी, बल्कि दिल्ली और उत्तरी भारत के स्मॉग को भी कम कर देगी। लेकिन यह एक अनुमान है — बारिश के लिए आर्द्रता और वायुमंडलीय स्थितियां भी जरूरी हैं। अगर यह होता है, तो यह एक अजीब तरह का प्राकृतिक अनुग्रह होगा।
क्या यह ज्वालामुखी फिर से फट सकता है?
संभव है, लेकिन अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं। ज्वालामुखी अक्सर एक बड़े विस्फोट के बाद शांत हो जाते हैं। लेकिन इथियोपिया के अफ़ार त्रिकोण एक ज्वालामुखीय रूपरेखा है — जहां धरती धीरे-धीरे टूट रही है। इसलिए, भविष्य में यहां और भी विस्फोट हो सकते हैं। वैज्ञानिक अब इस क्षेत्र को लगातार निगरानी कर रहे हैं।
9 टिप्पणि
Vaneet Goyal
नवंबर 26, 2025 AT 19:42 अपराह्नयह राख का बादल भारत तक पहुंचा, लेकिन सतह पर कोई खतरा नहीं। यह बिल्कुल सही है। हवाएं तेज हैं, राख ऊंचाई पर है, और AQI अभी भी सामान्य है। लोग घबरा रहे हैं, लेकिन विज्ञान बोल रहा है।
Amita Sinha
नवंबर 27, 2025 AT 23:28 अपराह्नअरे भाई ये ज्वालामुखी तो भारत के लिए बरसात का तोहफा लेकर आया है 😍 अब दिल्ली का स्मॉग धुल जाएगा और हम बारिश में नहाएंगे 🌧️✨ अफ्रीका का ज्वालामुखी हमारी हवा साफ कर रहा है... ये तो जीवन का सबसे बड़ा झूठ है 😂
Bhavesh Makwana
नवंबर 29, 2025 AT 05:24 पूर्वाह्नइस घटना से मुझे एक बात समझ आ रही है - पृथ्वी कभी नहीं भूलती। 12,000 साल की निष्क्रियता के बाद भी यह ज्वालामुखी अपनी ऊर्जा छोड़ गया। हम लोग सोचते हैं कि हम नियंत्रण में हैं, लेकिन ये बादल बता रहा है कि प्रकृति की घड़ी हमारी नहीं है। यह एक अद्भुत याददाश्त है।
Vidushi Wahal
नवंबर 29, 2025 AT 11:05 पूर्वाह्नमैंने आज सुबह आकाश में एक धुंध देखी। लगा जैसे धूल उड़ रही हो। अब पता चला - ये इथियोपिया की राख है। अजीब लगा। लेकिन कोई दिक्कत नहीं।
Narinder K
नवंबर 29, 2025 AT 22:36 अपराह्नतो अब हमारे लिए एक ज्वालामुखी बरसात का कारण बन गया? अरे भाई, अगर यही बात है तो हमें अफ्रीका में और ज्वालामुखी बनवाने चाहिए। दिल्ली का स्मॉग तो अब तक हमारे लिए बेहतरीन धुंध बन गया है।
Narayana Murthy Dasara
दिसंबर 1, 2025 AT 21:27 अपराह्नये बात बहुत खास है। एक अफ्रीकी ज्वालामुखी ने भारत की हवा साफ करने में मदद की। अगर हम इसे एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के रूप में देखें, तो ये बहुत सुंदर है। बिना किसी राजनीति के, बिना किसी ट्रीटी के - प्रकृति ने खुद अपना रास्ता बना लिया।
lakshmi shyam
दिसंबर 2, 2025 AT 03:53 पूर्वाह्नये सब बकवास है। अगर राख बादल भारत तक पहुंच गया तो ये खतरनाक है। तुम सब नासा के झूठ पर भरोसा कर रहे हो। ये ज्वालामुखी जानबूझकर भारत को निशाना बना रहा है। जलवायु युद्ध हो रहा है।
Sabir Malik
दिसंबर 2, 2025 AT 13:43 अपराह्नमैंने अपने दोस्त के बेटे को जो बीजिंग में रहता है, उसने बताया कि वहां आकाश अब गहरा भूरा हो गया है। लोग घरों में बंद हैं। और हम यहां बारिश की खुशी में नाच रहे हैं। ये तो बहुत अजीब है। एक तरफ जीवन बंद हो रहा है, दूसरी तरफ धुल रहा है। इंसानी जीवन कितना असमान है।
Debsmita Santra
दिसंबर 4, 2025 AT 12:53 अपराह्नवैज्ञानिक रूप से यह घटना जलवायु विज्ञान में एक नोटेबल क्लाउड फॉर्मेशन इवेंट है जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड के अणु जलवायु अनुकूलन चक्र में अस्थायी रूप से विकिरण बैलेंस को प्रभावित कर सकते हैं जिससे अवरोधन एवं निर्माण दोनों घटनाएं संभव होती हैं। इसका जलवायु प्रभाव निर्भर करता है इसके ट्रांसपोर्ट मैकेनिज्म और एरोसोल लाइफसाइकिल पर।