चे ग्वेरा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
चे ग्वेरा, पूरा नाम एर्नेस्टो 'चे' ग्वेरा, का जन्म 14 जून 1928 को अर्जेंटीना के रोसारियो में हुआ था। एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे, चे घर में पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बचपन से ही अस्थमा की समस्या से जूझने के बावजूद उन्होंने खेल और पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल की।
ब्यूनस आयर्स विश्वविद्यालय से चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर उन्होंने 1953 में डॉक्टर की डिग्री प्राप्त की। उनके परिवार का शिक्षा और साहित्य में गहरा रुझान था, और इसने उनकी सोच और कैरियर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
चे का सफर, जो उन्हें लैटिन अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में ले गया, उनकी दुनिया और लोगों के प्रति सोच को आकार देने में निर्णायक साबित हुआ। उन्होंने गरीबी, अन्याय और उत्पीड़न को देखा जिससे उनका दृष्टिकोण और सिद्धांत मजबूत हुए।
विद्रोह की राह पर पहला कदम
1954 में चे ग्वेरा मेक्सिको गए, जहां उन्हें क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो से मिलने का मौका मिला। 1955 में इस मुलाकात ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।
कास्त्रो उस समय निर्वासन में थे और क्यूबा के तानाशाह फुल्गेंशियो बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंकने की तैयारी कर रहे थे। चे ने कास्त्रो के '26 जुलाई आंदोलन' (26th of July Movement) में शामिल होने का निर्णय लिया। यह आंदोलन जल्द ही क्यूबा के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
क्यूबा क्रांति और चे की भूमिका
1956 में चे और अन्य 80 विद्रोहियों के साथ कास्त्रो ने क्यूबा के ओरियंटे प्रांत में एक साहसिक भूमि-अभियान शुरू किया। शुरुआत में कुछ कठिनाइयों और जीवन की चुनौतियों का सामना करते हुए भी चे ने हथियारों के इस्तेमाल में अपनी कुशलता साबित की।
धीरे-धीरे उन्होंने कास्त्रो के विश्वासपात्र सहयोगी के रूप में अपनी पहचान बनाई और 1959 में चे ने बतिस्ता सरकार को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई। क्रांति के बाद चे को क्यूबा के नेशनल बैंक के अध्यक्ष और उद्योग मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया।
उन्होंने भूमि पुनर्वितरण और औद्योगिक राष्ट्रीयकरण की योजनाएं भी तैयार कीं। चे ने कास्त्रो शासन को सोवियत संघ के साथ जोड़ा, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका द्वारा क्यूबा पर प्रतिबंध लगाए गए।
चे का जीवन क्रांति के बाद
हालांकि चे की क्यूबा में सत्ता के अन्य नेताओं के साथ रिश्ते बिगड़ने लगे। 1965 में उन्होंने क्यूबा छोड़ दिया और अफ्रीका चले गए, जहां उन्होंने विद्रोही सेनाओं को प्रशिक्षण देने का प्रयास किया, लेकिन इसमें असफल रहे।
1966 में चे चुपके से क्यूबा लौटे, लेकिन यह भी थोड़े समय के लिए ही था। इसके बाद वे बोलीविया गए, जहां उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व करने का प्रयास किया।
अंतिम समय और विरासत
लेकिन चे का बोलीविया अभियान सफल नहीं रहा। 9 अक्टूबर 1967 को उन्हें बोलीवियन सेना द्वारा कैद करके मार दिया गया।
चे ग्वेरा का जीवन और विचारधारा आज भी क्रांतिकारी आंदोलनों और सामाजिक न्याय के प्रतीकों में से एक बने हुए हैं। उनकी तस्वीरें और लेखन, विद्रोह और असमानता के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक के रूप में लोगों के दिलों में जीवित हैं।
चे ग्वेरा की कहानी हमें यह दिखाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ दुनिया को बदलने का सपना देख सकता है।