चैत्र नवरात्रि में पूजा‑व्रत के दौरान आम गलतियां
चैत्र नवरात्रि के समय घर‑घर में धूप, दीप और गीत गाते हुए दुर्गा माताओं की पूजा की जाती है। परंतु उत्सव की भीड़ में कई बार अनावश्यक त्रुटियां हो जाती हैं, जो भक्तों के अनुभव को प्रभावित कर सकती हैं। सबसे पहले, समयबद्धता का अभाव है। व्रत का पहला दिन ही दोपहर से ही शुरू करने के बजाय, सूर्योदय के समय ही उपवास शुरु करना चाहिए, ताकि शारीरिक ऊर्जा बनी रहे और ध्यान अधिक केंद्रित हो।
दूसरा सामान्य भूल यह है कि पूजा स्थल को साफ‑सुथरा रखने की अनदेखी की जाती है। मिडिया में धूल या अस्तर के टुकड़े दिखना न केवल रिवाज का उल्लंघन है, बल्कि मन की शुद्धता में भी बाधा डालता है। ताजगी वाले फूल, नई बेडिंग और साफ‑साफ जल का उपयोग करना चाहिए।
तीसरा, प्रसाद तैयार करने में अनुशासन की कमी होती है। अक्सर लोग शर्करा‑युक्त मीठे पदार्थों को बहुत अधिक मात्रा में बनाते हैं, जबकि पारंपरिक रीति में चावल, दाल, आँवला और कुटे हुए घी के मिश्रण को प्राथमिकता देना चाहिए। इससे व्रत की भावना कमजोर होती है और शारीरिक असुविधा भी बढ़ सकती है।
चौथे, मान्यताओं के अनुरूप कपड़े पहनने की उपेक्षा अक्सर हो जाती है। नवरात्रि के प्रथम दो दिन सफ़ेद या हल्के रंग के वस्त्र, और फिर लाल या कास्यर रंग की पोशाक अपनाना रिवाज है; इसे छोड़कर रोज़मर्रा के कपड़े पहनने से ऊर्जा की कमी महसूस हो सकती है।
- व्रत के प्रारम्भ में देर करना
- पूजन स्थान को अस्वच्छ छोड़ना
- अत्यधिक मीठा प्रसाद बनाना
- रिवाज के अनुसार न पहनना

लाल रंग का महत्व और नौ दुर्गाओं की प्रिय भेंट
नवरात्रि के दौरान लाल रंग को अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह रंग ऊर्जा, शक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, जो दुर्गा माताओं की युद्धक अभिव्यक्ति को दर्शाता है। लाल वस्त्र, लाल फूल (गुलाब और जानकी) और लाल मिठाई (खीर, मालपुआ) का उपयोग तीव्र शुद्धि प्रदान करता है और माताओं को आकर्षित करता है।
नौ दुर्गाओं में से प्रत्येक को अलग‑अलग भेंट देना अधिक उपयुक्त है।
- प्रथम दुर्गा (भूर्दुर्गा) – कंद, अंकुरित दाल; यह पोषण और भूमि की शक्ति दर्शाता है।
- दूसरी दुर्गा (भुवन द्वारिका) – सफ़ेद फूल और संगीत वाद्य; शांति तथा समरसता को दर्शाता है।
- तीसरी दुर्गा (कुंदिनि) – शहद और अड़िया; मीठी बोली और जीत का संकेत।
- चौथी दुर्गा (कल्पवस्तु) – तांबे की कड़ाही में पकाया गया हलवा; धन और अभिलाषा को प्रतिक दर्शाती है।
- पाँचवीं दुर्गा (महिषासुर) – काजू, बादाम, और केसरिया दूध; शक्ति और साहस का प्रतीक।
- छठी दुर्गा (सहस्रनाम) – नारियल का पानी; शुद्धता और संतोष को दर्शाता है।
- सातवीं दुर्गा (मालिंदा) – लाल फूलों की माला; प्रेम और समर्पण को दर्शाती है।
- आठवीं दुर्गा (शुत्री) – मोती और गहना; वैभव और आशीर्वाद का प्रतीक।
- नवमी दुर्गा (अंतिम शृंगार) – लाल कपड़े और कच्ची नारियल; अंतिम सामर्थ्य और श्रद्धा को व्यक्त करती है।
इन भेंटों को झांकियों में क्रमबद्ध रखकर पूजा के प्रत्येक दिन अर्पित करने से न केवल पूजा के स्वर में वैरायटी आती है, बल्कि दुर्गा माताओं की विभिन्न आयामों को सम्मानित करने का अवसर भी मिलता है। लाल रंग की लिपी, कंगन या बंधन को भी प्रासंगिक रूप से उपयोग किया जा सकता है, जिससे भक्तों की मनःस्थिति में दृढ़ता और उत्साह बड़ता है।